Gunjan Kamal

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माॅं की कही बात

आज जब मुझे अपने स्कूल / कॉलेज  के कुछ सुनहरे पलों की यादों को ताजा करने का मौका लेखनी की तरफ से मिल  रहा है तो सबसे पहले मेरे दिमाग में यही बातें आई कि मैं अपने स्कूल/ कॉलेज की अपनी अनकही बातें सबसे कह तो दूंगी लेकिन इन यादों को सहेज कर रखने वाला भी तो कोई चाहिए।


हम सबके दिल में कुछ लोग ऐसी जगह बना लेते  हैं जिनसे  हम अपने मन के भाव बेझिझक कहते है  और वह व्यक्ति हमारे उस भाव को समझकर हमारे साथ भी होता  है। सच कहूं तो मेरे जीवन में ऐसे लोगों की कमी है लेकिन इस कमी को सही मायने में पूरी मेरी डायरी करती है। मेरी इस  डायरी को मेरे जीवन से जुड़े हुए लोग मेरी दोस्त, मेरी सच्ची साथी और यहां तक कि मेरा हमसफ़र भी समझते हैं लेकिन मेरी नजर में मेरी डायरी मेरी सच्ची साथी बन कर मेरा साथ देती है।


आज मैं अपनी स्कूल कॉलेज से संबंधित यादों को अपनी सच्ची साथी ( अपनी डायरी ) के समक्ष रखने जा रही हूॅं। आज मैं अपनी माॅं की यादों में  सहेज कर रखे गए उन पलों को साझा करना चाहूंगी जो मेरी  उस उम्र के उन पलों में की गई हरकतों  को बताती है जो पल मेरी याददाश्त में तो है लेकिन उन पर  एक धुंधली सी परत पड़ने के कारण वों पल आज मेरी याददाश्त में धुंधली - धुंधली सी ही दिखाई पड़ती है और इसकी वजह उन पलों में मेरी उम्र है क्योंकि एक ढाई साल की बच्ची को उस उम्र के पलों में की गई हरकतें कहाॅं याद रहती हैं?


मेरी सच्ची साथी! मेरी माॅं द्वारा बताई गई मेरी वह हरकत !आज भी लोग सुनते हैं तो यही कहते हैं कि इसे बचपन से ही किसी और का साथ नहीं चाहिए बल्कि इसके लिए तो इसकी  किताबें ही एकांत में इसे वह सुकून देती है जिसकी तलाश आज तक हम सब करते आ रहे हैं।


मेरी सच्ची साथी! मेरी माॅं कहती है कि जब मेरी उम्र दो - ढ़ाई साल के बीच में रही होगी तब एक दिन मेरी माॅं मुझे अपने पास बैठाकर अपने रोज के गृह कार्य में व्यस्त थी, मैं उनसे नजरें बचाकर कहां चली गई थी, उन्हें इस बात का एहसास बहुत देर के बाद हुआ। पहले तो उन्हीं लगा कि शायद मैं पलंग पर जाकर सो गई होंगी क्योंकि जब भी मुझे नींद आती थी मैं बिना किसी को बताए पलंग पर जाकर सो जाती थी। मेरी मां ने मुझे पलंग पर भी देखा लेकिन वहां ना पाकर वह मुझे चारों तरफ ढूंढने लगी। यह वह वक्त था जब पापा भी ऑफिस के लिए निकल चुके थे और मुझसे छ: साल के बड़े भैया भी स्कूल जा चुके थे।


मेरी सच्ची साथी! मेरी मां का तो रो- रो कर बुरा हाल हो गया  कि मालूम नहीं मेरी लाडो कहां चली गई? तभी मेरी बड़ी चाची माॅं  के पास आईं और उनका हाथ पकड़ कर घर के पीछे बने एक चबूतरे के पास ले गई और उस तरफ इशारा किया। मेरी मां दौड़ते हुए वहां पर आई और उस बच्ची को अपने सीने से लगा लिया जो अपने बड़े भाई की पुरानी किताब और काॅपी  को खोल कर बैठी थी और ना जाने क्या-क्या बड़बड़ाएं जा रही थी?


मेरी सच्ची साथी! मेरी मां ने दौड़कर भागते हुए किसे गले से लगाया होगा? मेरे बताने से पहले ही  ये  बात तो तुम समझ ही गई होगी कि चबूतरे पर अपने बड़े भाई की पुरानी किताब और कॉपी को खोलकर बैठी वह लड़की जो बुदबुदाएं ही जा रही थी, वह और कोई नहीं बल्कि मैं ही थी। मेरी माॅं ने उसके बाद मेरे साथ क्या किया? अगली बार जब तुमसे मिलूंगी तब ही तुम से साझा कर पाऊंगी। जब तक वापस तुमसे मिलने नहीं आ जाती  तब तक के लिए मुझे जाने की इजाजत दो।

   🙏🏻🙏🏻 बाय बाय 🙏🏻🙏🏻


गुॅंजन कमल 💗💞💗


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9 Comments

kashish

10-Mar-2023 04:21 PM

nice

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Radhika

09-Mar-2023 01:47 PM

Nice

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अदिति झा

03-Feb-2023 01:28 PM

Nice 👍🏼

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